Monday, 23 September 2024

ज़माना कहाँ बर्दाश्त करता है


 ये जमाना कहाँ बर्दाश्त करता है,

 सच्ची मोहब्बत को, 

तभी तो दो दिल जो एक होना चाहते है,

 उन्हें ये अलग होने पर मजबूर कर देता है।  

सब कुछ देख लेता है ज़माना,

 बस अगर कुछ नहीं देख पाता है,

 तो वो है दो दिलों की मोहब्बत, 

और उनकी एक दूसरे के लिए चाहत। 

क्या सही है,

 क्या गलत है, 

ये यही सोचता रह जाता है,

पर जिन्हे अलग किया है इसने, 

वो कैसे रहेंगे एक दूसरे के बिना, 

इस सवाल का ख्याल,

 इसको आता ही नहीं है,

 क्योंकि इस जमाने की नजरों में,

सच्ची मोहब्बत की कोई कदर नहीं है।


कई दिल तोड़ता है ये जमाना,

आंखें होती है कई इसकी वजह से नम,

 फिर भी ये जमाना अपनी जिद कहाँ छोड़ता है,

 इसके वजह से तो बस, 

जिन्होंने एक दूसरे से जिंदगी भर, 

हाथ थामे रखने के वादे किये थे, 

वो बस एक दूसरे का साथ छोड़ते हैं, 

नहीं देख पाता है ये, 

प्यार की चाहत को,

ज़माना कहाँ बर्दाश्त करता है, 

सच्ची मोहब्बत को।

No comments:

Post a Comment