Wednesday 26 June 2024

साहिबा

 


मौसम पतझड़ के भी आए है,

और फूल खिलने के भी, 

साल भी कई बदले है वक्त ने, 

पर साहिबा आज भी कुछ साल पीछे ही खड़ी है, 

वो जो आगे बढ़ने के लिए, 

अपना हाथ छुड़वा के छोड़ गया था उसे पीछे, 

ले गया साथ मुस्कान भी, 

भर गया है दिल और आँखों को अजीब से बेचैनी से, 

दे गया है वो इंतजार सिर्फ, 

जिसे खत्म करने के लिए, 

दिन रात ढूंढती है बहाने उसके पास जाने के, 

दूर नही लगती उसे दूरियां भी अब, 

फिर से मेहबूब के करीब होने के एहसास को वो अपने करीब लाना चाहती है, 

अब भाती कहाँ है वो गांव की गलियां, 

जिनमें खिलखिलाकर हँसते हुए चलती थी साहिबा सहेलियों के साथ, 

और गूंजती थी उसकी पायलों की छन छन इन गलियों में, 

आज ये गलियां भी उसके मन जैसे सूनी और विरान पड़ी है, 

ये गलियां जिनमें कभी चलते हुए उससे कभी किसी मोड़ पर मुलाकात जरूर होती थी, 

आज यही गलियां अब उस हो चुके परदेसी की याद दिलाकर परेशान करती है, 

जिंदगी आगे बढ़ गई, 

छूट गई मोहब्बत पीछे, 

कामयाबी की जीत की गूंज के पीछे, 

छिपी है उसके रोने की सिसकियों की आवाज़ें,

खता कुछ नही हुई, 

पर सजा फिर भी मिल रही है, 

बात बस इतनी सी थी, 

की मोहब्बत झुकी थी ख्वाबों की जिद्द के आगे,

चेहरे पर उदासी लिए बैठी थी आज भी साहिबा, 

की तभी उसके करीब होने के एहसास ने आकर छुआ, 

खुशी से भागकर गई नीचे, 

तो गली के मोड़ पर खड़ा दिखा मेहबूब वो, 

लौट आई मुस्कान वापिस, 

गूंज उठा विरान गलियों में फिर से पायलों का शोर, 

हो गया इंतजार खत्म, 

आज आँसू उदासी या दुरियों के नाम के नही, 

मेहबूब से फिर से मिलने की खुशी के नाम के बहे है, 

आज सालों बाद मोहब्बत ने फिर से दिल की दहलीज पर दस्तक दी है, 

सालों बाद मोहब्बत ने फिर से दिल की दहलीज पर दस्तक दी है।



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