Friday 14 June 2024

जिंदा रहती है हमेशा मोहब्बतें - 36


आहना का एक्सीडेंट हो गया था और वो खून से लथपथ हो गई थी। आहना की आँखों के सामने अयांश का चेहरा आता है और फिर वो बेहोश हो गई। उसके आसपास लोगों की भीड़ जमा हो गई। उन्हीं में से किसी ने जल्दी से एंबुलेंस को फोन किया। जल्दी ही एंबुलेंस वहाँ पहुँच गई और दो वार्ड बॉयज ने आहना को उठाकर स्ट्रैचर पर लेटा दिया। उसके साथ जो सामान था, वो भी किसी ने एंबुलेंस के अंदर रख दिया। उसकी नब्ज़ बहुत ही धीमे चल रही थी पर उसका काफी खून बह चुका था। 


जल्द ही उसे हॉस्पिटल में एडमिट कर दिया गया। आहना का सारा सामान भी खून से सना हुआ था। हॉस्पिटल के स्टाफ को आहना के परिवार को उसके एक्सीडेंट के बारे में बताना था इसलिए एक नर्स ने आहना के सामान को देखना शुरू कर दिया। उस नर्स को आहना की डायरी मिल गई जो बिल्कुल ठीक थी। उसने उसे खोलकर देखा तो पहले पेज पर आहना का नाम लिखा हुआ था। उसने आगे के पेज देखे तो उनपर कुछ नम्बर लिखे हुए थे जिनमें सबसे पहला नम्बर पापा का था। उसने जल्दी से वो नम्बर मिलाया। 


कबीर बहुत देर से ऑफिस के मैनेजर के साथ बैठे हुए काम में व्यस्त थे। उन्हें ये भी नही पता था की आहना ऑफिस से जा चुकी है। वो मैनेजर को कुछ बता रहे थे की तभी उनका फोन बजने लगा। उन्होंने जैसे ही फोन उठाया, नर्स ने कहा, “सर, मैं सिटी लाइफ हॉस्पिटल से बात कर रही हूँ। आपकी बेटी, आहना का एक्सीडेंट हो गया है और वो यहाँ एडमिट है। आप प्लीज जल्दी आ जाइए।” 


कबीर ने जैसे ही ये सुना, वो जल्दी से कुर्सी से खड़े हुए और केबिन से बाहर निकलकर राकेश के केबिन में आए। राकेश ने जब उन्हें ऐसे देखा तो एक पल के लिए वो हैरान रह गए। उन्होंने कबीर से पूछा, "क्या बात है, कबीर?” 


“आहना...आहना का एक्सीडेंट हो गया है। वो हॉस्पिटल में है इस वक्त।” राकेश ने जैसे ही कबीर की बात सुनी, वो जल्दी से खड़े हुए और कबीर के साथ हॉस्पिटल जाने के लिए निकल गए। 


वो लोग जब हॉस्पिटल के अंदर आकर आहना के कमरे के सामने पहुँचेे तो वहाँ पर पुलिस खड़ी थी जो डॉक्टर से कुछ बात कर रहे थे। राकेश ये सोचकर परेशान थे की वो आहना को कैसे देखेंगे क्योंकि वो जानते थे की कहीं न कहीं आहना की इस हालत के जिम्मेदार वो भी थे। 


कबीर डॉक्टर के पास आए और उनसे पूछा, “डॉक्टर, मेरी बेटी कैसी है?” 


“आप कौन है?” पुलिस इंस्पेक्टर ने कबीर से पूछा। 


राकेश ने जब शीशे से आहना को देखा तो वो मुड़ गए क्योंकी उनसे आहना की वो हालत देखी ही नही गई। उसका सिर पर पट्टी बंधी हुई थी, मुंह पर ऑक्सीजन मास्क लगा हुआ था और दाएं हाथ पर ड्रिप लगी हुई थी। उसके चेहरे पर चोट के निशान भी थे। 


"मैं आहना का पिता हूँ।” कबीर ने कहा जिससे राकेश ने आहना से नजरें हटाकर उनकी तरफ देखा। 


“आपकी बेटी का एक्सीडेंट हुआ है। आपको किसी के ऊपर शक है। कोई ऐसा जिससे आहना को खतरा हो।” इंस्पेक्टर ने पूछा। 


“नही सर। ऐसा तो कोई नही है।” कबीर ने कहा। राकेश खामोशी से उनकी बातें सुन रहे थे।


"ठीक है। जिसने भी ये किया है हम उसका पता जल्दी ही लगा लेंगे और उसे गिरफ्तार कर लेंगे।” इंस्पेक्टर की बात सुनकर राकेश थोड़ा सा डर गए पर उन्होंने कुछ नही कहा। पुलिस वहाँ से चली गई। उनके जाते ही कबीर ने डॉक्टर से पूछा, “मेरी बेटी ठीक है ना डॉक्टर?” 


डॉक्टर ने एक गहरी सांस ली और कहा, "उनकी कंडीशन बहुत क्रिटिकल है। बॉडी में कई जगह फ्रैक्चर है और बहुत ज्यादा खून भी बह चुका है। गाड़ी से टक्कर लगकर गिरने की वजह से सिर में भी चोट लगी है। आज ही हम उनके फ्रैक्टर्स के लिए उनका ऑपरेशन करेंगे पर हमें नही लगता वो जिन्दा बच पाएंगी।”


ये सुनकर कबीर को एक गहरा सदमा लगा। आहना का हँसता मुस्कुराता हुआ चेहरा उनकी नज़रों के सामने आ गया। उन्होंने शीशे से आहना को देखा तो रो पड़े। एकलौती बेटी को खो देने के ख्याल से ही उन्हें तकलीफ होने लग गई थी। बेशक आहना उनकी अपनी बेटी नही थी पर उसके बचपन से कबीर ने ही उसकी परवरिश की थी और उन्होंने आहना को हमेशा सगी बेटी की तरह ही प्यार दिया था। राकेश ने उन्हें संभालकर कुर्सी पर बैठाया। नर्स ने आहना का सारा सामान कबीर को सौंप दिया। 


उसी दिन आहना का ऑपरेशन हुआ जो की ठीक से हो गया था पर उसके बाद दो दिन तक आहना को होश नही आया था जिसकी वजह से डॉक्टर बहुत ही ज्यादा परेशान थे क्योंकी अभी तक आहना को होश आ जाना चाहिए था। कबीर भी आहना को देखकर बहुत परेशान थे। उधर पेरिस में अयांश भी परेशान हो गया था क्योंकि आहना, राकेश और कबीर में से कोई भी उसका फोन नही उठा रहा था। 


ऑपरेशन हो जाने के बाद तीसरे दिन आहना को आखिरकार होश आ ही गया। एक नर्स उसके हाथ में लगी ड्रिप बदल रही थी की तभी उसने देखा की आहना धीरे धीरे अपनी आँखें खोल रही है। नर्स ने ये देखकर जल्दी से डॉक्टर को बुलाया। कबीर ने जब ये सुना की आहना को होश आ गया है, उनकी परेशानी थोड़ी सी कम हो गई। कबीर इतने दिनों में एक बार भी घर नही गए थे। वो आहना के वॉर्ड के बाहर बैठे शीशे से उसे देखते रहते थे क्योंकि किसी का भी वॉर्ड के अंदर जाना मना था। राकेश ही उनके लिए खाना लेकर आते और उन्हें कुछ भी करके खिला दिया करते। उन्हें इस बात का पछतावा था की उनकी वजह से आहना की जिंदगी बर्बाद हो गई थी। वो ये भी सोचकर परेशान थे वो अयांश का सामना कैसे करेंगे। क्या होगा अगर उसे गलती से भी पता चल गया की आहना की इस हालत के जिम्मेदार उसके पापा है। वो पापा जिन्हें उसने आहना का ख्याल रखने के लिए कहा था और उन्होंने उसकी आहना को मौत के करीब पहुँचा दिया।


डॉक्टर ने अंदर जाकर आहना को चेक किया। आहना चुपचाप कमरे की छत को देखे जा रही थी। डॉक्टर उसे अच्छे से चेक करकर और नर्स को कुछ कहकर वॉर्ड से बाहर आए तो कबीर ने उन्हें बहुत ही उम्मीद से पूछा, “मेरी आहना ठीक है ना अब डॉक्टर।” 


डॉक्टर ने कबीर के कंधे पर हाथ रखा और कहा, “देखिए, मैं आपकी तकलीफ को समझ सकता हूँ। एक पिता के लिए बहुत मुश्किल होता है अपने बच्चे को इस हालत में देखना पर मैं आपको कोई झूठी उम्मीद भी नही दे सकता। आहना को होश बेशक आ गया है पर अभी भी उसकी हालत नाजुक है। हमारी दी हुई दवाईयां भी उसके ऊपर असर नही कर रही है पता नही क्यों। हम उसे अभी दो दिन अंडर ऑब्जर्वेशन रखेंगे और पूरी कोशिश करेंगे आहना को ठीक करने की। आप हिम्मत रखे बस। दो दिन बाद हम आपको आहना से मिलने भी देंगे।” 


कबीर के मन में जो उम्मीद जगी थी आहना के ठीक हो जाने की, डॉक्टर की बात सुनकर उनकी वो उम्मीद टूट गई। 


आहना को दो दिन ऑब्जर्वेशन में रखा गया पर उसकी हालत में कोई सुधार नही था। दो दिन बाद कबीर को आहना से मिलने दिया गया। कबीर ने आहना के हाथ को थामा और रो पड़े। आहना उस वक्त जागी हुई थी। कबीर को ऐसे देखकर उसकी आँख में से भी आँसू निकलकर बह गया। ऑक्सीजन मास्क अभी भी उसके मुंह पर लगा हुआ था फिर भी उसने बोलने की कोशिश करते हुए कहा, “पापा, आई...आई लव यू।” 


कबीर ने प्यार से उसकी सिर पर हाथ फिराया तो उसने कहा, “पापा, आप मेरी लिए एक काम करेंगे। एक लेटर लिख दीजिए मेरी तरफ से अयांश के लिए अभी और अगर मैं उसे वो नही दे पाई तो आप दे देना। मेरे पास अब और वक्त नही है। मैं बस अयांश का इंतजार कर रही हूँ क्योंकी वो अब कभी भी यहाँ आ सकता है। प्लीज पापा।” 


“तुम्हें कुछ नही होगा, बेटा। क्यों कर रही हो तुम ऐसी बातें।” कबीर ने तकलीफ में कहा पर आहना ने उनसे एक और बार रिक्वेस्ट की तो वो उसके सामान से उसकी डायरी और पेन ले आए। 


आहना ने अपना ऑक्सीजन मास्क हटाया और जो कुछ भी वो अयांश से कहना चाहती थी, उसने वो सब बोलना शुरू किया और कबीर वो सब लिखने लगे। आहना की कुछ बातों ने कबीर को बहुत हैरान किया और उन्हें वो सब जानकर बहुत गुस्सा भी आया। उन्होंने आहना से कहा, “बेटा ये सब तुमने मुझे क्यों नही बताया। मैं इन सब को छोडूंगा नही।” 


“आप कुछ नही करेंगे, पापा। वादा कीजिए मुझसे।” आहना ने कहा तो कबीर ने मजबूरन उससे वादा कर दिया। आहना ने कबीर से वो लेटर मांगा तो कबीर ने डायरी का पेज फाड़कर आहना को दे दिया। आहना को सांस लेने में दिक्कत होने लगी तो कबीर ने उसे ऑक्सीजन मास्क पहना दिया। वो आहना से कुछ कहने ही वाले थे की तभी नर्स ने आकर कहा, “सर, अब आप इन्हें आराम करने दीजिए प्लीज।” 


कबीर आहना के माथे को चूमकर वॉर्ड से बाहर चले गए। अब बस आहना को अयांश का इंतजार था। वहीं नुपुर बहुत खुश थी जबसे उसे पता चला था की इतने दिन हॉस्पिटल में रहकर भी आहना नही बचने वाली थी। 


पेरिस में सारा काम अच्छे से कर कर अयांश वापिस आ गया था। उसे एयरपोर्ट पर उसका नया ड्राइवर लेने आया था। वो आहना से मिलने के लिए इतना एक्साइटेड था की उसने अपने घर न जाकर ड्राइवर से गाड़ी सीधा आहना के घर ले जाने के लिए कहा। उसने रास्ते से आहना के लिए लाल गुलाबों का एक गुलदस्ता भी लिया। 


आहना के घर पहुँचकर उसने गाड़ी से उतरकर तीन चार बार घर की बैल बजाई पर किसी ने भी दरवाज़ा नही खोला। अयांश को काफी अजीब लगा क्योंकि सन्डे होने की वजह से आहना को आज घर में ही होना चाहिए था। वो ये सब सोच ही रहा था की तभी वहाँ साथ वाले घर में रहने वाली एक औरत अपने घर से बाहर आई। उस औरत ने जब अयांश को देखा तो उससे पूछा, “बेटा, आप आहना से मिलने आए हो क्या?” 


अयांश ने उन्हें देखा और कहा, “जी आंटी।” 


“उससे मिलने के लिए तो आपको हॉस्पिटल जाना चाहिए बेटा।” उस औरत के मुंह से हॉस्पिटल का नाम सुनते ही अयांश का मन घबराने लगा और उसने पूछा, “हॉस्पिटल में क्यों? क्या हुआ आहना को?” 


"बेटा, आहना का बहुत बुरा एक्सीडेंट हुआ है। वो सिटी लाइफ हॉस्पिटल में एडमिट है। उसके पापा इतने दिनों बाद आज घर आए थे तब हमने पूछा तो पता चला। कबीर जी ने बताया की डॉक्टर का कहना है की उसका बच पाना बेहद मुश्किल है।” ये सुनते ही अयांश को डर लगने लगा की वो आहना को खो देगा। जो फूल वो आहना के लिए लाया, वो उसके हाथ से गिरकर जमीन पर बिखर गए। अयांश जल्दी से अपनी गाड़ी की तरफ आया और अंदर बैठकर ड्राइवर से हॉस्पिटल चलने के लिए कहा। 


हॉस्पिटल पहुंचकर अयांश ने रिसेप्शन से आहना के बारे में पूछा और उसके वॉर्ड की तरफ आ गया, जहाँ कबीर अकेले ही बाहर बैठे हुए थे। वो उनकी तरफ आया और उनसे पूछा, “ये सब कैसे हुआ, अंकल?” 


कबीर अयांश को सब कुछ बता देना चाहते थे पर उन्होंने आहना से वादा किया हुआ था इसलिए उन्होंने अयांश को कुछ नही बताया और बात बदलते हुए कहा, “आहना इंतजार कर रही है तुम्हारा। जाओ उससे मिल लो जाकर।” 


अयांश वॉर्ड के अंदर चला गया। जैसे ही उसने आहना को देखा, उसे बहुत तकलीफ हुई। वो धीरे से आहना के पास आया और उसके हाथ को अपने हाथ में पकड़ लिया। आहना ने अपनी आँखें खोलकर उसे देखा। आहना की आँखों से आँसू बहने लगे और उसने कहा, “अयांश, मैं तुम्हें छोड़कर नही जाना चाहती पर मेरे पास अब ज्यादा वक्त नही है।  मैं... मैं बस तुम्हारा इंतजार कर रही थी की तुमसे आखिरी बार मिल सकू। मुझे माफ कर देना अयांश और ये तुम्हारे लिए है।” उसने अपने दाएं हाथ में पकड़ा हुआ लेटर अयांश को दिया और कहा, “मेरे जाने के बाद इसे पढ़ना एंड आई विल ऑलवेज लव यू और तुम कभी भी खुद को अकेला महसूस मत करना। अपना ख्याल रखना और मेरे जाने के बाद खुश रहना। उदास नही वरना मैं भी खुश नही रह पाऊंगी।” 


अयांश ने आहना का दिया हुआ लेटर अपनी पॉकेट में रखा और उसके चेहरे को अपने हाथों में थामते हुए कहा, “तुम क्यों ऐसी बातें कर रही हो, आहना। कुछ नही होगा तुम्हें। तुमने मुझसे वादा किया था ना की तुम जिंदगी भर मेरे साथ रहोगी। तुम ऐसे छोड़कर नही जा सकती मुझे अब।” 


“मुझे जाना होगा अयांश। बस तुम मुझसे वादा करो की खुश रहोगे तुम मेरे बिना।”  आहना ने अयांश के हाथ को थामते हुए कहा। 


“आहना, तुम क्यों...” अयांश ने इतना ही कहा और उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। 


“वादा करो, अयांश।” आहना ने फिर कहा। 


“मैं वादा करता हूँ।” जैसे ही अयांश ने ये कहा, आहना ने मुस्कुराते हुए उसे देखा और फिर अचानक से मशीन से बीप की आवाज आने लगी। अयांश ने मशीन की तरफ देखा जिसमें हार्टबीट वाली लाइन बिल्कुल सीधी हो चुकी थी। उसने आहना को देखा। उसकी आँखें बंद हो चुकी थी और उसका बेजान हाथ अयांश के हाथ से छूटकर बेड पर गिर गया। 


Continued in जिंदा रहती है हमेशा मोहब्बतें - 37


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