Saturday 8 June 2024

जिंदा रहती है हमेशा मोहब्बतें - 33


नुपुर आहना को अयांश के साथ नही देख पा रही थी इसलिए उसने फैसला किया की वो अब आहना को नही छोड़ेगी। उसे ऐसे देखकर रिद्धिमा ने कहा की उसे परेशान होने की जरूरत नही है क्योंकि आहना को नुकसान पहुँचाने में उनकी मदद अब वही इंसान करेगा जो उसे सबसे ज्यादा पसंद करता है जिससे नुपुर थोड़ा हैरान हो गई और उसने कहा, “ये आप क्या कह रही है, मॉम। भला अयांश हमारी हेल्प क्यों करेगा आहना को हार्म करने के लिए।” 

“अयांश नही बेटा, राकेश। मैं राकेश की बात कर रही हूँ।” रिद्धिमा ने कहा।

“पर वो भी क्यों तैयार होंगे ये करने के लिए और कैसे?” नुपुर ने पूछा। 

रिद्धिमा हसीं और उन्होंने कहा, “बड़े से बड़े इंसान की भी कोई एक कमजोरी होती है नुपुर। राकेश की भी है और इसी कमज़ोरी का फायदा उठाकर मैं राकेश को ये सब करने के लिए तैयार करूंगी। बस तुम देखती जाओ।” 

रिद्धिमा ने अपना फोन टेबल से उठाकर किसी को फोन मिलाया। जैसे ही सामने वाले इंसान ने फोन उठाया, रिद्धिमा ने कहा, “मैं आपसे मिलना चाहती  हूँ। आप कल घर आ जाना।” 

रिद्धिमा वहाँ से उठकर किचन की तरफ चली गई और नुपुर वहीं बैठे हुए उन्हें जाता हुआ देखकर सोचने लगी की रिद्धिमा क्या करने वाली है। 

अगले दिन शाम में रिद्धिमा से मिलने एक आदमी आया। रिद्धिमा ने उसके गले लगते हुए उससे पूछा, “कैसे है भैया, आप?” 

“ठीक हूँ, मेरी प्यारी बहना। तुम ये बताओ तुमने मुझे कैसे याद किया?” रिद्धिमा के भाई, प्रतीक ने पूछा। रिद्धिमा कुछ कहने ही वाली थी की तभी वहाँ एक सर्वेंट चाय की ट्रे लेकर आया। उसने चाय टेबल पर रखी और वहाँ से चला गया।

“भैया, मैं चाहती हूँ की आप राकेश से वो वापिस ले लीजिए जो आपका है।” सर्वेंट के जाते ही रिद्धिमा ने कहा पर प्रतीक उसकी बात का मतलब नही समझ पाया इसलिए उसने पूछा, “तुम किस बारे में बात कर रही हो, रिद्धिमा।” 

रिद्धिमा ने प्रतीक को देखा और कहा, “मैं उस बिज़नेस के बारे में बात कर रही हो जो आपने राकेश को दिया है।” 

“क्या तुम मजाक कर रही हो, रिद्धिमा? हाँ, मैंने राकेश की मदद जरूर की थी वो बिजनेस शुरू करने में पर राकेश ने उसे अपनी मेहनत और लगन से इतना बड़ा किया है और जो पैसे मैंने राकेश के बिजनेस में लगाए थे, उन्हें तो वो मुझे कब का लौटा चुका है। अब मेरा कोई हक नही बनता उसके बिजनेस पर और ये बात तुम भी अच्छे तरीके से जानती हो।” प्रतीक ने रिद्धिमा को समझाते हुए कहा पर रिद्धिमा को कुछ भी करके प्रतीक को अपने काम के लिए मनाना था इसलिए उसने कहा, “जानती हूँ भाई ये सब मैं पर अगर आप नही होते तो क्या राकेश वो बिज़नेस शुरू भी कर पाता। मैं कुछ नही जानती इतने सालों में मैंने आपसे पहली बार कुछ मांगा है। आपको मेरे लिए ये करना ही होगा।” 

प्रतीक ने एक गहरी सांस ली और कहा, “क्या हो गया है रिद्धिमा तुम्हें? क्यों करना चाहती हो तुम ये सब? अपने ही पति से उसकी मेहनत छीनना चाहती हो तुम। ये सब तो हमने तुम्हें नही सिखाया था।” 

“भाई, आपको क्या लगता है। राकेश अपनी बरसों की मेहनत इतनी आसानी से जाने देगा। उसका बिजनेस उसका सपना था और अब उसकी कमजोरी है। इसी कमज़ोरी का फायदा उठाकर मैं उससे अपना एक काम करवाना चाहती हूँ बस जो मैं आपको नही बता सकती और राकेश को भी इस बारे में पता नही चलना चाहिए।” रिद्धिमा ने कहा। 

प्रतीक ने थोड़ी देर रिद्धिमा को ध्यान से देखा और पूछा, “तुम फिर से कुछ गलत करने की तो नही सोच रही हो ना, रिद्धिमा? मुझे इंडिया वापिस आकर कहीं से पता चला की तुमने अयांश की शादी जबरदस्ती किसी और के साथ करवाई है जिसे वो चाहता तक नही है। कहीं तुम फिर से अयांश के साथ कुछ गलत करने का तो नही सोच रही?” 

“भाई अयांश मेरा बेटा है और मैं जो भी करूंगी उसके अच्छे के लिए ही करूंगी। आप उसकी चिंता न करे। बस मेरा ये काम कर दीजिए प्लीज।” इस बार रिद्धिमा ने रिक्वेस्ट करते हुए कहा। 

“ठीक है पर अगर मुझे पता चला की तुमने कुछ गलत किया है तो भूल जाऊंगा की मेरी कोई बहन भी है।” प्रतीक की ये बात सुनकर रिद्धिमा थोड़ा घबरा गई और उसने कहा, “नही भाई मैं पक्का कुछ गलत नही करूंगी।” 

“तुम्हें मैं बहुत अच्छे से जानता हूँ रिद्धिमा। अपने ख्वाहिशों को पाने के लिए तुम किसी भी हद तक जा सकती हो। तुम्हारा काम हो जाएगा। भेज दूंगा मैं राकेश को एक नोटिस पर याद रखना इस बार मेरे बेटे को कोई तकलीफ नही होनी चाहिए। वैसे अयांश है कहाँ?” प्रतीक ने पूछा। 

“वो इस वक्त अपने दोस्तों से मिलने गया हुआ है।” रिद्धिमा ने कहा तो प्रतीक ने उसे देखा और फिर पूछा, “और तुम्हारी बहु? उससे भी नही मिला हूँ मैं अभी तक।” 

“वो अपने मायके गई हुई है।” रिद्धिमा ने कहा। 

“ठीक है, उनसे मिलने फिर मैं किसी और दिन आ जाऊंगा। अभी चलता हूँ। अपना ख्याल रखना तुम।” कहते हुए प्रतीक उठे ही थे कि तभी बाहर एक गाड़ी के रुकने की आवाज आई। 

गाड़ी में से उतरकर राकेश अंदर आए और प्रतीक को देखकर मुस्कुरा उठे। वो प्रतीक से मिले और पूछा, “कैसे है आप भाई?” 

“ठीक हूँ। तुम कैसे हो?” प्रतीक ने उनसे पूछा। 

“मैं भी ठीक हूँ, भाई। आप खड़े क्यों है? आइए अंदर चलकर बैठते है।” राकेश की बात सुनकर प्रतीक ने कहा, “तुम्हारे साथ बातें करने के लिए हम किसी दिन अच्छे से वक्त निकालकर डिनर पर आएंगे सबको लेकर। अभी इजाजत चाहूंगा क्योंकि मुझे कहीं और भी जाना है एक जरूरी काम से।” 

“जी भाई, जरूर। आपका ही घर है ये।” राकेश ने कहा। प्रतीक रिद्धिमा और राकेश से मिलकर वहाँ से चले गए। 

एक दिन राकेश जब ऑफिस पहुँचेे तो ऑफिस में सभी लोग काफी परेशान लग रहे थे। कबीर और वहाँ का मैनेजर, महेश जल्दी से उनके पास आए और कबीर ने कहा, “राकेश, एक प्रॉब्लम हो गई है।” 

राकेश उनके साथ अपने केबिन में आ गए और अपनी कुर्सी पर बैठ गए। कबीर ने एक एनवेलप राकेश को दिया जिसमें एक लेटर था। राकेश ने एनवेलप में से लेटर को निकालकर पढ़ना शुरू किया। जैसे जैसे वो लेटर पढ़ रहे थे, उनके चेहरे पर कई भाव आ जा रहे थे। उन्हें समझने में ज्यादा देर नही लगी की इसके पीछे किसका हाथ है। 

कबीर ने उन्हें देखा और कहा, “राकेश, सारा स्टाफ इस लेटर की वजह से बहुत परेशान है। हमें जल्दी ही इस मैटर को सॉल्व करना होगा। वो तो अच्छा है की आहना और अयांश यहाँ नही है। अगर उन्हें पता लग जाता इस बारे में तो अच्छा नही होता।” 

राकेश उठे और कबीर से कहा, “टेंशन मत लो। ये मैटर मैं सॉल्व कर लूंगा। तुम यहाँ सब कुछ संभालो। मुझे कहीं जाना होगा।” 

कबीर ने राकेश को तसल्ली दी की वो सब कुछ संभाल लेंगे। राकेश ऑफिस से बाहर आकर अपनी गाड़ी में बैठे और अपने घर पहुँचे। वो गुस्से से घर के अंदर आए और लिविंग रूम में आकर उन्होंने वो लेटर रिद्धिमा के सामने फैंकते हुए कहा, “ये सब तुम्हारा किया धरा है ना।” 

रिद्धिमा जो आराम से सोफे पर बैठकर मैगजीन पढ़ रही थी, उसने मैगजीन से नज़रे हटाकर राकेश को देखा और मुस्कुराते हुए कहा, “ओह ये तुम्हें मिल गया। कैसा लगा सरप्राईज तुम्हें।” 

नुपुर जो उनके पास बैठकर अपना कुछ काम कर रही थी, उसे कुछ समझ नही आ रहा था की वो दोनों किस बारे में बात कर रहे है और वो सोच रही थी की उस लेटर में ऐसा क्या है जिसकी वजह से राकेश रिद्धिमा पर ऐसे गुस्सा कर रहे है पर उसने उन दोनों से कुछ नही पूछा और चुपचाप उनकी बातें सुनने लगी।

“इसलिए तुमने अपने भाई को घर पर बुलाया था?” राकेश ने गुस्से में पूछा।

“पता है तो पूछ क्यों रहे हो।” रिद्धिमा ने कहा। 

राकेश रिद्धिमा के इरादों को अच्छे से जानते थे इसलिए उन्होंने पूछा, “क्या चाहती हो तुम इस बार रिद्धिमा मुझसे?” 

रिद्धिमा ने राकेश को मुस्कुराते हुए देखा और कहा, “वाह राकेश, कितना समझने लगे हो तुम मुझे। अब जब तुम्हें पता चल गया है की मैं तुमसे क्या चाहती हूँ तो सुनो। मैं चाहती हूँ की तुम हमारी मदद करो आहना को जान से मारने में क्योंकि हम उसे अयांश से बहुत दूर भेज देना चाहते है।” 

जैसे ही राकेश ने ये सुना, वो हैरानी से रिद्धिमा को देखने लगे। वहीं नुपुर ये जानकर खुश हो रही थी पर अगले ही पल उसकी खुशी गायब हो गई जब राकेश ने कहा, “मैं ऐसा कभी नही करूंगा। मेरी बेटी की तरह है आहना। तुमने सोच भी कैसे लिया की अपनी बेटी की जान लूंगा मैं और फिर मैं अयांश और कबीर से क्या कहूंगा कि मार दिया मैंने आहना को। कभी भी नही।” 

“तो फिर अपना बिज़नेस खोने के लिए तैयार रहो।” रिद्धिमा ने बिना किसी भाव के कहा। राकेश बिना कुछ कहे उसे देखते रहे तो रिद्धिमा ने कहा, “क्या हुआ? जाओ यहाँ से अब तुम और जाकर देखो की तुमसे तुम्हारा बिजनेस अब कैसे दूर होता है। वो बिजनेस जो तुम्हारा सपना है। वो बिजनेस जो तुम्हारी मेहनत है और जिससे सिर्फ एक नही, उन हज़ारों लोगों का घर चलता है जिनके जीने के लिए उनकी एक जरूरत है तुम्हारा बिजनेस और हमारे बेटे का फ्यूचर भी है वो बिज़नेस। याद रखना राकेश उस बिज़नेस को तुम सिर्फ एक आहना के लिए खो रहे हो। सिर्फ एक आहना के लिए तुम हज़ारों लोगों की जिंदगी के साथ गलत करोगे। ध्यान से सोच लो अभी भी मेरी बात को।” 

राकेश सोफे पर बैठ गए और सोचने लगे। एक तरफ उन्हें आहना का हँसता हुआ चेहरा नज़र आ रहा था और दूसरी तरफ उनका सपना और उनके सारे एम्प्लॉय, जिनकी मेहनत की वजह से उनका बिजनेस बढ़ा था और वो रोज खुशी खुशी ऑफिस में आकर काम किया करते थे। 

उन्होंने रिद्धिमा को देखा और कहा, “मैं… मैं तुम…तुम्हारा साथ देने के लिए तैयार हूँ।” 

एक आँसू उनकी आंख में से निकलकर उनके गाल पर बह गया।


Continued in जिंदा रहती है हमेशा मोहब्बतें - 34




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