Tuesday 28 May 2024

जिंदा रहती है हमेशा मोहब्बतें - 27


कुछ दिन अस्पताल में रहकर अयांश घर वापिस आ गया। उसी दिन रात के वक्त जब अयांश खाने के लिए नीचे नही आया तो राकेश उसे नीचे लाने के लिए डाइनिंग टेबल से खड़े हुए। उन्हें उठते हुए देखकर रिद्धिमा ने पूछा, “तुम कहाँ जा रहे हो उठकर?” 


“अयांश को लेने जा रहा हूँ।” राकेश ने कहा। 


“तुम्हें उसकी फिक्र होती है। मुझे तो लगता था तुम्हें उस आहना के अलावा कुछ और याद ही नही रहता है।” रिद्धिमा ने  कहा। 


“आपको कोई जरूरत नही है उसे नीचे लाने की। आप शायद भूल रहे है उसका एक्सीडेंट हुआ है। उसे रेस्ट करने देना चाहिए जिससे वो जल्दी ठीक हो सके।” किचन से आती हुई नुपुर ने कहा और कुर्सी पर बैठ गई। 


राकेश ने गुस्से से नुपुर को देखा और पूछा, “अब तुम मुझे बताओगी की मुझे मेरे बेटे का ख्याल कैसे रखना है।” 


ये सुनकर नुपुर हँसने लगी और उसने कहा, “आपको अचानक से उसकी इतनी फिक्र कैसे होने लगी। जहाँ तक मुझे याद है आप तो उससे इस हद तक गुस्सा थे की आप बात तक नही करते थे उससे।” 


“तुम मेरे और अयांश के मामले में ना ही बोला करो तो बेहतर होगा क्योंकि तुम भूल रही हो की वो सब तुम्हारी वजह से ही हुआ था।” राकेश ने कहा और अपनी कुर्सी से खड़े होकर ऊपर चले गए। उन्होंने अयांश के कमरे के बाहर आकर दरवाज़े पर नॉक किया। 


अयांश अपने फोन में कुछ देख रहा था जब उसने दरवाज़े पर नॉक की आवाज सुनी। उसने दरवाज़े की तरफ देखा तो राकेश को वहाँ देखकर थोड़ा हैरान रह गया। उसने उन्हें अंदर आने के लिए कहा। राकेश अंदर आकर उसके पास आए और कुछ कहने ही वाले थे कि उनकी नजर अयांश के फोन की स्क्रीन पर गई जिसमें आहना की तस्वीर थी। वो अयांश के पास बैठे और उन्होंने कहा, “जब तुम्हें आहना से इतना प्यार है तो तुमने उसे माफ क्यों नहीं किया जब वो तुमसे माफी मांग रही थी।”


“पापा, अगर मैं आहना को उस वक्त माफ कर देता तो हम साथ तो रहने लग जाते पर उस साथ में वो पहले वाली बात नही होती। वो पहले जैसा प्यार नही होता क्योंकि आहना के मन में नुपुर की वजह से कहीं न कहीं ये बात रहती की मैं उसके साथ जरूर हूँ पर उसका नही हूँ। मुझे उसे ये यकीन दिलाना है की मैं उसके अलावा किसी और का हो ही नही सकता। मुझे उसके दिल में फिर से वही प्यार जगाना है जैसा प्यार हमारा था और इसके लिए मेरा उससे अभी दूर रहना जरूरी है जिससे उसके मन में मेरे लिए प्यार बहुत ज्यादा बढ़ जाए क्योंकि दूरियां प्यार को मजबूत बनाती है। मुझे यकीन है की जब आहना के मन में मुझे खोने का डर आएगा तो उसका प्यार मेरे लिए बढ़ जाएगा।” अयांश ने कहा और राकेश को देखा। 


“उम्मीद है ऐसा है ही हो। अब चलो, मैं तुम्हें खाने के लिए नीचे ले जाने आया  हूँ।” राकेश ने कहा। अयांश को यकीन नही हुआ की राकेश उसे लेने आए है। उसे तो अभी भी यही लग रहा था की राकेश उससे नाराज है। 


राकेश ने उसका हाथ पकड़ कर उसे अच्छे से सहारा देकर खड़ा किया और ध्यान से उसे नीचे ले आए। उस दिन अयांश बहुत खुश था। 


राकेश अब उससे धीरे धीरे बात करने लग गए। वो रोज शाम को ऑफिस से घर आकर उसके साथ थोड़ा वक्त बिताते थे। अयांश ये जानकर खुश था की राकेश की नाराज़गी थोड़ी सी कम हो गई है। 


आहना भी रोज राकेश से ऑफिस में अयांश के बारे में पूछा करती थी। उसने अयांश को कॉल करके बहुत बार उससे बात करने की भी कोशिश की पर अयांश उसका फोन नही उठाता था। वो अयांश से मिलने उसके घर भी आती थी पर गार्ड उसे रिद्धिमा और नुपुर के कहने पर अंदर ही नही आने देते थे या फिर अयांश ही उससे मिलने से मना कर देता था। आहना को तकलीफ तो बहुत होती थी पर उसे उम्मीद थी की अयांश और उसके बीच की ये दूरियां ज्यादा देर तक नही चलेंगी। 


अयांश ने भी ठीक होने के बाद ऑफिस आना शुरू कर दिया था। आहना ने वहाँ भी बहुत बार उससे बात करने की कोशिश की पर अयांश हमेशा उसे नजर अंदाज कर देता। 


एक दिन ऑफिस में लंच टाइम हो रखा था इसलिए सारे एम्प्लॉय कैंटीन में लंच करने गए हुए थे। कबीर और राकेश भी एक मीटिंग के लिए हॉटल गए हुए थे। सिर्फ़ आहना ही थी जो लंच छोड़कर काम में लगी हुई थी। 


अयांश अपने केबिन से बाहर आया तो आहना को वहाँ बैठा देखकर हैरान रह गया। वो उससे पूछना चाहता था की वो लंच करने क्यों नही गई पर उसने खुद को रोक लिया और वहाँ से जाने लगा। 


आहना ने जब उसे देखा तो जल्दी से उठी और उसे रोकते हुए कहा, “अयांश, मुझे तुमसे एक बार बात करनी है बस।” 


अयांश चेहरे पर गुस्से वाले भाव के साथ पलटा और कहा, “मुझे तुमसे कोई बात नही करनी। तुम क्यों मेरे पीछे पड़ी हुई हो।” 


“तुम एक बार मेरी बात सुन लो, प्लीज़।” आहना ने कहा।


ये सुनकर अयांश हँसने लगा और उसने कहा, “देखा आहना, एक वक्त था जब ऐसे ही मैं तुम्हारे पीछे था की तुम एक बार मेरी बात सुन लो क्योंकि उस वक्त मुझे तुम्हारी सबसे ज्यादा जरूरत थी और मैं चाहता था कि उस वक्त तुम मेरे साथ रहो और आज देखो, तुम मेरी जगह पर हो बल्कि तुम्हें तो मेरी जरूरत भी नही है।” 


उसकी बात सुनकर आहना की आँखों से आँसू बहने लगे और उसने कहा, “ऐसा नही है अयांश।” 


अयांश उसके करीब आया और उसने कहा, “पता है आहना, मुझे चोट मेरी गाड़ी को टक्कर लगने से नही लगी और न ही जहाँ दिख रही है वहाँ लगी है।” उसने आहना का हाथ पकड़ कर अपने दिल पर रखा और फिर कहा, “असली चोट तो यहाँ लगी है जो तुम्हारे मुझे अपने आप से दूर करने पर लगी है जिसे कोई भी नही देख सकता। शुरू से ही तुम मुझे खुद से दूर करती आई हो। किसी ने हल्का सा कुछ कह दिया तो तुम मुझे अपने आप से दूर कर देती थी तो अब दूर ही रहो मुझसे।” 


अयांश वहाँ से जाने लगा तो आहना ने कहा, “तुम तो कहते थे की कभी मुझे खुदको तुमसे दूर करने ही नही दोगे तो फिर आज खुद क्यों दूर हो रहे हो।” 


अयांश ने मुड़कर उसे देखा और कहा, “हाँ, चाहता था तुम्हारे करीब रहना और मैंने कोशिश भी की पर तुम मुझसे दूरियां ही बनाती रही तो अब मैं खुद ये दूरियां बनाना चाहता हूँ।” 


अयांश ऑफिस से घर वापिस आ गया। नुपुर और रिद्धिमा लिविंग रूम में बैठी थी। अयांश भी वहाँ सोफे पर आकर बैठा ही था की नुपुर ने कहा, “मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।” 


अयांश ने उसपर ध्यान न देते हुए अपना फोन निकाला और उसपर कुछ देखने लगा। नुपुर अयांश का इस तरह उसे नजर अंदाज करना बर्दाश्त नही कर पाई और उसने कहा, “तुमसे बात कर रही हूँ मैं।” 


अयांश ने उसे देखा और कहा, “बोलो।” 


“हमारी शादी को इतना वक्त हो गया है और हम अभी तक मेरे घर नही गए है इसलिए इस संडे हम मेरे घर जा रहे है। मेरे पेरेंट्स ने इनवाइट किया है हमें लंच पर।” नुपुर ने कहा। अयांश मना करने वाला था पर फिर कुछ सोचकर उसने हाँ कह दिया।


Continued in जिंदा रहती है हमेशा मोहब्बतें - 28


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