उसकी मौजूदगी मेरे आसपास नहीं है,
न मैं उसे देख सकती हूं,
न छू सकती हूं,
पर उसके एहसास को,
मैं अपने अंदर तक महसूस करती हूं,
चादरों में उसकी खुशबू है,
कमरे में उसकी यादें,
दुआ करती हूं मैं दिन रात यही,
की किस्मत मुझे उससे,
फिर किसी मोड़ पर दोबारा मिलवा दे।
जानती हूं की अब से रोज सुबह उठते ही,
सबसे पहले उसका चेहरा नही देख पाऊंगी मैं,
पर उसके एहसास को,
हर वक्त अपने करीब पाऊंगी मैं।
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