Friday 22 March 2024

जिंदा रहती है हमेशा मोहब्बतें - 2


अयांश पिछले कुछ दिनों से आहना की ज्यादा ही परवाह करने लगा था। ऐसा क्यों था वो खुद भी नही समझ पा रहा था। उसने इस बारे में सोचते हुए खुद से सवाल किया की कहीं उसे आहना से प्यार तो नही हो गया। उसे अपने ऐसा सोचने पर हैरानी हुई। उसने आहना को देखा जो उसे ही देख रही थी। आहना को देख उसने खुदको अपने सवाल का जवाब देते हुए मन ही मन में कहा, “नही नही, मुझे इससे अब प्यार कैसे हो सकता है जबकि स्कूल में तो मुझे इसके साथ इतना ज्यादा रहना तक पसंद नही था। मैं बस दोस्त होने के नाते इसका ख्याल ही रख रहा हूँ जैसे स्कूल में रखा करता था। और कुछ भी नही है मेरे मन में इसके लिए।”  


ये सोचते ही उसका मन थोड़ा सा शांत हुआ। उसे कुछ न कहता देखकर निखिल ने कहा, “ठीक है भाई, हम सब चलते है फिर अगर तूने पार्टी नही करनी। तू रख आहना का ख्याल। हम कल मिलते है।”


निखिल उसे बाय कहके बाकी सबके साथ वहाँ से चला गया। उसके जाने के बाद अयांश ने एक गहरी सांस ली। उसने आहना को गाड़ी में बैठने के लिए कहा और खुद भी गाड़ी में आ बैठा। अयांश ने गाड़ी चलानी शुरू की और थोड़ी देर बाद एक पार्क के सामने रोक दी। उसने अपनी सीट बेल्ट खोलते हुए आहना की तरफ देखकर कहा, “चलो, यहाँँ थोड़ी देर बैठते है। तुम्हें अच्छा लगेगा।” 


आहना उसके साथ बिना कुछ कहे गाड़ी से नीचे उतर गई। अयांश ने उसका हाथ पकड़ लिया और पार्क के अंदर आकर उसके साथ एक लकड़ी की बेंच पर बैठ गया। अयांश ने अभी भी आहना का हाथ पकड़ा हुआ था। आहना ने कुछ नही कहा बस वो अयांश के हाथ में अपने हाथ को चुपचाप देखे जा रही थी। उसने अपना हाथ अयांश के हाथ से छुड़वाया तक नही।


“क्या तुम्हें ये पार्क याद है आहना? हम बचपन में कितनी बार यहाँँ आकर खेला करते थे।” अयांश ने मुस्कुराते हुए कहा। 


"क्या हम यहाँँ इस बारे में बात करने आए हैं?" आहना ने अपने हाथ से ध्यान हटाके अयांश की तरफ देखते हुए पूछा।


“नही, मैं तुम्हारे साथ थोड़ा टाइम स्पेंड करना चाहता था।” अयांश ने धीरे से कहा। 


आहना ने एक गहरी सांस ली और कहा, “अयांश, वो हमारा बचपन था। वो समय जब हमे किसी भी बात की टेंशन नही थी लेकिन अब सब कुछ बदल चुका है। वो बचपन तो अब बस एक याद बनके रह गया है। हमें अब प्रेजेंट में जीना है।” 


अयांश को लगा कि वह ठीक कह रही है। सच में सब कुछ बदल चुका है। उसका आहना के लिए बिहेवियर भी। बचपन में उसने कभी आहना की इतनी परवाह नही की थी लेकिन इन कुछ दिनों में उसे पता नही क्या हो गया था की अब वह उसकी आँखों में आँसू तक नही देख पा रहा था।


अयांश ने आहना के गाल को छुआ और पूछा, “आहना, मैं तुम्हें सुबह से देख रहा हूँ। तुम इतनी परेशान किस वजह से हो?” 


“मैंने तुमसे कहा था कि कुछ भी नही है। नही हूँ मैं परेशान। तुम ये बात बार बार पूछना बंद करो।” आहना ने अयांश के हाथ को अपने गाल से हटाते हुए कहा। उसकी आँखों से फिर से आँसू बहने लगे।


“तुम कह रही हो कुछ भी नही है पर तुम्हारे आँसू कह रहे है कि बहुत कुछ है।” अयांश के इतना कहते ही आहना ने उसकी तरफ देखा और उसके गले से लगकर रोने लगी। अयांश ने उसे खुद से दूर करके उसके आँसू पोंछे और उसका हाथ पकड़ कर कहा, "मुझे बताओ क्या परेशानी है? मैं हूँ ना तुम्हारे साथ।" 


“पापा के हार्ट में प्राब्लम हैं। उन्हें रोज बहुत दर्द हो रहा था इसलिए, मैं उन्हें जबरदस्ती हॉस्पिटल लेकर गई। कल ही मुझे उनकी रिपोर्ट्स मिली और मुझे इस बारे में पता चला।” आहना ने उसे सब कुछ बता दिया। 


“क्या अंकल को पता है इस बारे में?” अयांश ने पूछा ।


आहना ने ना में गर्दन हिला दी और रोते हुए कहा, “मैं उन्हें नहीं बता सकती।”


“तुम्हें उन्हें इस बारे में बताना होगा आहना।" अयांश ने उसे शांत करने की कोशिश करते हुए कहा।


“मुझे पता है। पापा को ऑपरेशन की जरूरत है लेकिन पापा इसके लिए तैयार नही होंगे। उन्हें पैसो की टेंशन होने लगेगी।” आहना ने अपने आँसू पोंछेते हुए कहा। 


“पैसो की टेंशन मत लो। मैं हूँ ना तुम्हारे साथ। मैं तुम्हारी हेल्प करूंगा लेकिन तुम्हें उन्हें बताना होगा।” अयांश ने कहा। 


“मैं बता दूंगी उन्हें आज रात पर मुझे बहुत डर लग रहा है। वो ठीक तो हो जाएंगे ना।” आहना ने उसकी तरफ देखकर आँसू भरी आँखों के साथ कहा। अयांश उसका सिर सहलाते हुए मुस्कुराया और हाँ में अपना सिर हिला दिया। वो दोनों पार्क से बाहर आ गए। 


अयांश ने गाड़ी आहना के घर के सामने रोकी और उसका हाथ पकड़कर कहा, “तुम बिल्कुल भी टेंशन मत लेना। मैं हूँ तुम्हारे साथ।”


रात को आहना कबीर के लिए दूध गर्म करने जा रही थी कि तभी उसे कमरे से कबीर के जोर से चिल्लाने की आवाज आई। वह भागकर कमरे के अंदर आई तो देखा कि कबीर अपने सीने पर हाथ रखे हुए है और उन्हें बहुत ही दर्द हो रहा है।


"पापा।" वो चिल्लाते हुए कबीर के पास बैठी। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे और हाथ डर से काँपने लगे। उसे कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या करना है इसलिए उसने काँपते हाथों से अयांश का नंबर मिलाया। कुछ सेकेंड बाद कॉल कनेक्ट हो गई।


“आहना, तुमने इस वक्त फोन किया। सब ठीक है ना?” अयांश ने पूछा।


“अयांश, क्या तुम मेरे घर आ सकते हो?” उसकी घबराई हुई आवाज सुनकर अयांश परेशान हो गया और उसने जल्दी से पूछा,  “क्या हुआ, आहना? तुम रो क्यों रही हो?” 


“पा…पापा को बहुत दर्द हो रहा है। मुझे कुछ समझ नही आ रहा मैं क्या करूं।” आहना ने अपनी घबराई हुई आवाज़ में कहा। 


“आहना, घबराओ मत। रिलैक्स हो जाओ। मैं आ रहा हूँ।" अयांश ने जल्दी से फोन काटा और अपने पिता, राकेश को सब कुछ बता दिया। 


“तुमने मुझे शाम को घर आते ही क्यों नहीं बताया इस बारे में। चलो आहना के घर।” राकेश ने कहा और वो दोनों आहना के घर जाने के लिए निकल गए। 


वह जल्दी से उसके घर पहुँचे। अंदर पहुँचते ही उन्होंने देखा की आहना कबीर के पास बैठी हुई थी और उसके गालों से लगातार आँसू बहे जा रहे थे। अयांश ने उसे संभाला और कहा, “आहना रोना बंद करो। चलो अंकल को हॉस्पिटल लेकर चलते हैं।”


अयांश और राकेश ने कबीर को गाड़ी में बैठाया और जल्दी ही सब उन्हें लेकर हॉस्पिटल पहुँचे। डॉक्टरों ने कबीर को वार्ड में ले जाकर उन्हें चेक करना शुरू किया। आहना बाहर लगी कुर्सी पर बैठ गई। अयांश भी उसके पास आकर बैठा और कहा, “टेंशन मत लो, आहना। अंकल बिल्कुल ठीक हो जाएंगे।” 


“मुझे बहुत डर लग रहा है। मम्मी के बाद, मेरे पास सिर्फ वही है।” आहना ने अयांश को देखते हुए कहा। उसकी आँखों से आँसू फिर से बहने लगे। 


आहना पाँच साल की थी जब उसकी माँ, अंजलि की कैंसर से मौत हो गई थी। उस समय उसे कुछ भी महसूस नही हुआ क्योंकि वह बच्ची थी और कबीर ने उसे कभी यह एहसास नही होने दिया कि उसकी माँ अब इस दुनिया में नही रही।


अयांश ने प्यार से उसके आँसू पोंछे और उसे समझाने लगा की कबीर को कुछ नही होगा। 


डॉक्टर बाहर आए और राकेश से कहा, “आप मेरे साथ आइए।” 


अयांश आहना को भी अपने साथ डॉक्टर के केबिन में ले गया। 


"क्या हुआ है उन्हे डॉक्टर?" राकेश ने गंभीर होकर पूछा। 


डॉक्टर ने एक गहरी सांस ली और कहा, "हमें जल्दी ही उनका ऑपरेशन करना होगा वरना उनकी जान को खतरा हो सकता है।” 


"डॉक्टर, आप किसी बात की चिंता किए बिना जल्द से जल्द ऑपरेशन करें।” राकेश ने आहना के हाथ को पकड़ते हुए कहा।


“क्या मैं पापा से मिल सकती हूं, डॉक्टर?” आहना ने उम्मीद भरी नजरो से डॉक्टर को पूछा। 


“आप पाँच मिनिट के लिए मिल सकती है उनसे।” डॉक्टर ने कहा। 


आहना बिना कुछ कहे डॉक्टर के केबिन से बाहर निकलकर कबीर के वार्ड में चली गई। उसने उनका माथा छुआ और रोने लगी। “पापा, आप मुझे छोड़ कर नही जा सकते। आपको मेरे लिए जीना होगा।” 


अयांश भी उसके पीछे पीछे अंदर आ गया। जब उसने देखा कि वह रो रही है तो उसने उसके कंधे पर हाथ रख दिया ये बताने के लिए कि वो उसके साथ है। उसने अयांश की तरफ अपनी आँसूओं से भरी आँखों से देखा और कहा, “मैं इन्हें ऐसे नही देख सकती, अयांश।” 


अयांश उसे वार्ड से बाहर ले आया। उसने उसे कुर्सी पर बैठाया और  सबके लिए कॉफी लेने चला गया। कॉफी लाकर उसने एक कप राकेश को दिया और फिर आहना के पास आकर बैठ गया। 


“कॉफी पीलो। तुम्हें अच्छा लगेगा।” उसने आहना को कॉफी देते हुए कहा। 


“थैंक यू।” आहना ने कॉफी पीते हुए कहा।


पूरी रात अयांश और राकेश आहना के साथ अस्पताल में ही रहे। अगली सुबह, कबीर का ऑपरेशन हुआ। वे तीन घंटे उन सबको तीन साल के बराबर लगे। आहना ने चैन की सांस ली जब डॉक्टर ने कहा कि कबीर अब खतरे से बाहर है।


उसने राकेश और अयांश को थैंक्यू कहा। राकेश ने उसके गाल को छूआ और कहा, “कबीर अब ठीक है। अब परेशान मत होना।” 


राकेश वहाँ से चले गए क्योंकि वो पूरी रात अस्पताल में रहकर थक गए थे। आहना ने अयांश को भी वहाँ से जाने के लिए कहा पर अयांश ने जाने से मना कर दिया। वो दोनों कबीर से मिलने उनके कमरे में आए। कबीर को अभी होश नही आया था। आहना वहाँ पड़े सोफे पर आ बैठी और अयांश उसके लिए कुछ खाने के लिए लेने चला गया। वापिस आकर उसने आहना को एक सैंडविच और जूस की बोतल दी और खुद भी सैंडविच खाने लगा। 


एक घंटे बाद उन दोनों ने देखा कि कबीर धीरे-धीरे अपनी आँखें खोल रहे थे। अयांश डॉक्टर को बुलाने के लिए कमरे से बाहर चला गया। डॉक्टर ने कबीर का चेकअप किया और कहा, "अब घबराने की कोई बात नही है। सब कुछ ठीक है।" 


डॉक्टर के जाने के बाद आहना कबीर के पास बैठ गई। कबीर कुछ बोलने की कोशिश कर रहे थे लेकिन उनके मुंह से कोई शब्द नही निकला। 


“अंकल, आप बोलने की कोशिश ना करे।” अयांश ने आहना के पास खड़े होकर कहा। 


कुछ वक्त के बाद राकेश भी कबीर से मिलने आए। जब वो कबीर से मिलकर कमरे से बाहर निकले तो आहना  उनके पास पहुँची और कहा, “थैंक यू, अंकल। आपने हमारे लिए जो किया है, उसे मैं कभी नही भुलुंगी।” 


“कैसी बात कर रही हो, आहना। तुम मेरी बेटी हो और मैं अपनी बेटी को तकलीफ में कैसे देख सकता हूँ।” राकेश कि बातों ने आहना को रुला दिया। राकेश हमेशा आहना को अपनी बेटी समझते थे और उन्होंने कबीर के मुश्किल समय में हमेशा उनकी मदद की थी। कबीर राकेश के लिए काम करते है फिर भी राकेश ने कबीर को हमेशा एक दोस्त माना है। 


कुछ दिन अस्पताल में रहकर कबीर घर वापिस आ गए। आहना दिन रात कबीर का ख्याल रखती जिससे वह धीरे धीरे ठीक होने लगे पर इस बीच वो कॉलेज बहुत ही कम जा पाई इसलिए अयांश ने उसे अपने नोट्स दे दिए जिनसे वो उन लेक्चर्स को पढ़ पाए जिन्हें वो मिस कर चुकी थी। धीरे धीरे आहना की लाइफ फिर से पहले जैसी होने लगी। 


एक दिन, अयांश आहना से मिलने आया। वह अपने कमरे में थी इसलिए कबीर ने अयांश को आहना के कमरे में भेज दिया। अयांश ने उसके कमरे के बाहर आकर दरवाजा खटखटाया और कहा,  “आहना, क्या मैं अंदर आ सकता हूँ?” 


आहना ने उसे देखा और मुस्कुराकर कहा, “अयांश, तुम्हें

पूछने की जरूरत कब से पड़ने लगी। आ जाओ।” 


अयांश बेड पर आके बैठ गया और पूछा, "तो कैसी चल रही है लाइफ?" 



Continued in जिंदा रहती है हमेशा मोहब्बतें - 3














No comments:

Post a Comment